प्रियांशु सक्सेना की कविताएं

प्रियांशु सक्सेना एक ऐसा नाम जिसे हम एक मझे हुए संपादक  के तौर पर जान सकते  हैं. लेकिन उनके जीवन के कई पहलू हैं. अगर एक पहलू उनके संपादकीय जीवन को परिभाषित करता है तो दूसरा साहित्यिक। एक तरफ जहां प्रियांशु ने करीब 27 कानून की किताबों का संपादन किया है. वहीं कविता लेखन में भी काफी सक्रिय रहीं हैं. प्रियांशु कभी -कभी कहानियां भी लिखती हैं. प्रियांशु की कविताओं में समय का सच है पर वक़्त का दिखावापन बिलकुल नहीं। उनके कविताओ को पढ़कर सहज ही समझा जा सकता है कि प्रियांशु न्यू ऐज राइटर हैं. आप भी पढ़िए प्रियांशु की कविताएं.......

1.1.1. दिल ढूंढता है वापसी का बहाना कोई

दिल ढूंढता है वापसी का बहाना कोई,
फिर चाय कॉफ़ी यारों का ठिकाना कोई,
आज bill के नाम पर किसकी जेब कटेगी,
Party हुई, तो चाय किस किस में बटेगी,
College है साले उठ,
ऐसा बोल के अब कौन उठाएगा,
फुल strength वाली class में,
मेरे बैठने की जगह कौन बनाएगा,
Cooking experiment वाला खाना कौन खिलायेगा,
Class bunk की तो proxy कौन लगाएगा,
अरे दोस्त है तू साले..!! कब काम आयेगा,
Exam से एक दिन पहले कौन जगायेगा
मेरे notes पूरे कौन कराएगा
Exam hall में cheating कौन कराएगा
Invigilator डांटे तो धीरे धीरे answer कौन फुसफुसायेगा
बिना notice के घर कौन आयेगा
सोते सोते बिस्तर से कौन उठाएगा
कौन रात को १२ बजे birthday surprise देगा
जरुरत पड़ने पर मेरी जेब से बिना पूछे पैसे कौन लेगा
बवाल करूँगा, तो किस्से कौन निपटायेगा
मेरे लिए girlfriend कौन पटायेगा
कौन लडेगा मुझसे हर छोटी बात पे
मुझे मेरी वाली को ले कर कौन चिड़ायेगा
Result आ गया ये कौन बताएगा
Back आने पर, मुझे कौन चुपाएगा
Pass हो गये, तो दूर कौन जायेगा

ये सब किया धरा उन्ही कमीनो का है, और मैं ये Poem लिख रहा हूँ, पागल थे सब, बल्कि अभी भी है

कभी कभी हम मिलते हैं,
पुरानी बातें भी याद करते हैं,
ये रिश्ता ही ऐसा है दोस्ती,
सबसे अलग सबसे नायब,
दोस्त हम खुद चुनते हैं,
बिना शर्त रूप रंग भेदभाव,
कहने को  तो सब साथ हैं,
पर साथ वही रहते हैं,
जो लायक होते हैं,

तो ये कविता मेरे उन कमीने दोस्तों के लिए
जो मेरे साथ हैं
और उनके लिए भी
जो नही हैं


1.1.2. तुझे भूलना है पर भुलायूं कैसे..

तुझे भूलना है पर भुलायूं कैसे..
दूर जाना है मगर जाऊं कैसे...
रह रह के सामने आता है तू...
मैं दूर जाऊं तो जाऊं कैसे...!!

तुझको नही तो न सही..
मुझको तो प्यार है...
आखिर ये बात खुद को समझाऊ कैसे..
मैं दूर जाऊं तो जाऊं कैसे...!!

तेरे नाम का हर शख्स..
तेरी याद दिला जाता है..
वो वो है तू नही ये खुद को बताऊँ कैसे..
मैं दूर जाऊं तो जाऊं कैसे...!!

1.1.3. मेरी निगाहें 

तेरी तस्वीर अक्सर...
जब मेरे हाथों में आती है...
तो ले के आढ़ ये....
मेरी निगाहें मुस्कुराती हैं....!!
तेरी आवाज़ अक्सर जब...
मेरे कानों में पड़ती है...
झलक पाने को तेरी ये...
गली तक दौड़ पड़ती हैं...!!
बड़ी मसरूफ रहती हैं...
ये तेरे ख्वाब बुनती हैं...!!
कई चेहरे परखती हैं ...
तो जा के एक चुनती हैं...!!
ये जो मेरी निगाहें हैं ...
मेरी ना एक सुनती हैं...!!
तेरी तस्वीर अक्सर ...
जब मेरे हाथों में आती है...!!!
तो ले के आढ़ ये...
मेरी निगाहें मुस्कुराती हैं...!!!


1.1.4. वो जो हंसती है भोर के जैसा

वो जो हंसती है भोर के जैसा..
धूप सी घर में बिखर जाती है..!!
बड़ा डरती है वो अँधेरे से..
इसलिए शाम लौट जाती है..!!

मेरा संगीत उसी से यारों..
छन्न से पायल वही बजाती है..!!
ये जो टक टक की है आवाज़ सुनी..
कर इशारे मुझे बुलाती है...!!

रंग ही रंग है उसपे सारे..
फूल कलियाँ वही सजाती है..!!
ये जो तारे है आसमानों में..
उँगलियों से इन्हें मिलाती है..!!

बड़ा मासूम सा दिल है उसका..
आप हंसती है और हंसाती है..!!
जहाँ जाती है बनाती है जगह...
सबके दिल में, वो उतर जाती है..!!

कभी मिलना हो उसे मुझसे तो..
यूँ बहाने नए बनाती है..!!
ये जो ऑंखें हैं उसकी शीशे सी..
इश्क करती है मुझसे, वो भी, ये बताती हैं..!!


1.1.5. मेरे दिल की हर बात तुम जान लेते हो 

मेरी हर उलझन
सुलझा देते हो..
करीब आ के
मेरी बैचैनी मिटा देते हो..!!
मेरी हर बात याद रखते हो...
मेरी पलकों पे
नए ख्वाब सजा देते हो..!!
न लब खोलू
फिर भी जान लेते हो..
मैं जो कहूँ
झट से मान लेते हो..!!
अनजान रहती हूं मैं
खुद अपने दिल से..
मेरे दिल की हर बात
तुम जान लेते हो..!!


1.1.6. मुझको अच्छा रहने दे

मुझको अच्छा रहने दे
तू मुझको सच्चा रहने दे
ये बङे बङों की दुनिया है
तू मुझको बच्चा रहने दे

ये कैसे बन गए बङे बङे
कुर्सी के पीछे लङे लङे
भाई को भाई ने मारा
उजङें हैं कुनबे खङे खङे

इनसे अच्छे हम छोटे हैं
हिन्दू मुसिल्म न रोते हैं
रोटी के टुकङे करते हों
हमसे हिस्से न होते हैं

ए राम रहीम खुदा अल्लाह
सबका मन साफ़ किया रखना
और सबके सिरहाने पर तू
एक बचपन की तकिया रखना

जो सही गलत बतलाती है
हर भेद भाव मिटलाती है
जिस पर सर रख कर धर्म जाति
इक चद्दर में सो जाती है


1.1.7. मंजिल 

आँखों में नींद भरी है पर आती नही..
लोरियां अब हमे सुलाती नही..!!
खोखली मुस्कान रहती है होंठो पे..
चेहरे पे हंसी खिलखिलाती नही..!!
जितना दौड़ते हैं मंजिलों कि तरफ..
और दूर जाती हैं वो पास आती नही..!!
थक चुके हैं पांव छालों से भर गये..
ये जिन्दगी कामिनी बाज आती नही..!!
हम भी जिद्दी हैं इन्तहा भी देखें..
कल ही सही हाथ आनी ही है..
मंजिल जो आज हाथ आती नही..!!


1.1.8. बचपन

पापा बाहर जायेंगे
तो हम भी बाहर जायेंगे
हम उलटी चप्पल पहनेंगे
तो वो सीधी करवाएंगे

साइकिल जब सिखलाएंगे
तो पीछे पीछे आयेंगे
जब हम ठोकर खायेंगे
हाथों से हमे उठाएंगे

मम्मा का दुप्पटा ओढेगे
लाली बिंदी लगवाएंगे
दिन भर हम उधम मचाएँगे
लूडो गुट्टे खिल्वायेंगे
जोरों की मार खायेंगे
ये मैंने नही भाई ने किया
ऐसा रट्टा भी लगायेंगे

बोतल में पानी भर देंगे
भाई को टॉफ़ी दे देंगे
हम अच्छे अच्छे बच्चे हैं
हम काम सभी के कर देंगे

हम अच्छे थे जब छोटे थे
गुड्डे गुड़ियों को रोते थे
ये कहाँ आ फंसे चक्कर में
कितने सुकून से सोते थे

अब हर पल चिंतन करते हैं
कैसे कुछ कर के दिखलायें
मौजूद तरीके बहुतेरे
कैसे इस मन को बहलायें

अब हर पल चिंतन करते हैं
कैसे कुछ कर के दिखलायें


1.1.9. खबर 

किसी के आने की खबर है
ये उस खबर का असर है
जाड़े की धुप खिली है
ओस पत्तियों पर झिलमिली है
हर रंग खुशनुमा एहसास है
हर कली दिल की खिली है
उसको खबर करो
मेरी ख़ुशी का आलम क्या है
वो बेखबर है मुझसे पर
उसके आने से थमी नब्ज चल पड़ी है


1.1.10. बात 

वादें, वफाएं, उल्फत, बहुत हो चुके सनम..
चलो कुछ जमीनी हकीकत की बात की जाये..!!
ऊँचे महलों के किस्सों को अब ख़त्म कर के..
टूटी एक अदद झोपड़ी की बात की जाए..!!
भाई को भाई का कातिल बना दे ऐसे..
खोखले रिश्तों की बात की जाए..!!
माँ बाप को जो सड़क पर ला दे ऐसे..
जिम्मेदार बेटों की बात की जाये..!!
लूट के खा रही जो देश को..
ऐसी सत्ता की बात की जाये..!!
सोने की चिड़िया को जो बिलखा दे ऐसी..
भूख और गरीबी की बात की जाये..!!