कपिल जैन की कविताएं

कपिल जैन की कविताएं समय के सच को बयां कराती कविताएं हैं। कपिल की कविताओ में समय का दर्द है, समाज का मुखौटा दिखाई देता है। उनकी कविताओ में प्रेम है और मनुष्यता कि एक ऐसी कसौटी जो जीवन की सार्थक कसौटी को जाहित कराती जान पड़ती है। इसलिए अगर हम कपिल की कविताओ को जीवन की कविता कहें तो गलत नहीं होगा। आप भी पढ़िए कपिल जैन की कविताएं -

1.   उत्तम क्षमा 

अहंकार त्यागता है क्षमा
सुसंस्कार पालता है क्षमा
शीलवान का शस्त्र है क्षमा
अहिंसक का अस्त्र है क्षमा
प्रेम का परिधान है क्षमा
विश्वास का विधान है क्षमा
सृजन का सम्मान है क्षमा
प्रतिशोध की शक्ति है क्षमा
नफरत का निदान है क्षमा
अहिंसा की साधना है क्षमा
संयम से सिंचित फुलवारी है क्षमा
कल्याण की कामना है क्षमा
दीपक में दया की ज्योति है क्षमा
मैत्री की भावना है क्षमा
प्रेम की पालना है क्षमा
पवित्रता का प्रवाह है क्षमा,
नैतिकता का निर्वाह है क्षमा
सद्गुण का संवाद है क्षमा
अहिंसा का हृदय है क्षमा
होंठों का उच्चारण नहीं,
आत्मा का आचरण भी है क्षमा...


2. कोरा कागज

एक कोरा कागज
या
अंत की तलाश में हूँ मैं
एक अन्त,
जो कर दे परिभाषित
मेरा होना अब तक

तुम,
जिसे चाहिए मेरा एक कोना
तुमने,
ध्यान दिया ही नहीं
लिखा है बस अब तक तुमको

इतनी,
बार लिखा तुमको।
कि,
बस मेरे कोरे कागज पें
जिंदा तुम

जानी पहचानी कविता
कलम,
बन जाते शोकगीत
ओर
उदास तमाम कोरे पन्ने
लेते,
ओढ़ मुझे

रात और बढ़ जाती है
जगा देख,
मुझे
बंद आँखों मे श्वेत कागज
मैं सो भी तो
नहीं पाता


3. समय  बोलेगा

तेरी हेवानियत से कुंठित हुई।
तेरी प्रतिबंधों से प्रतिबंधित हुई ।
यह मेरी निर्बलता का प्रतीक नहीं,
ना ही मेरे भाग्य की लकीर....
यह मेरे कर्म का फल भी नहीं ।
यह तेरी नपुसंकता का आधार है,
तेरी दरिन्दगी का घिनौनापन है,
तेरी निर्लज्जता की अकड़ है।
मैं आदर्शों का दंभ नहीं हूँ,
मैं जुआरी की हर नहीं हूँ
ना ही मैं झूठ का मुखौटा हूँ ।
तू बार-बार चिल्लाया है
और इस चिल्लाहट की वेहशीपन ने
मुझे बार-बार नंगा किया है।
और मैं बार-बार इसलिए चूप रही
क्योंकि इस नंगेपन से जन्मा कल,
अंधा, बहरा, और गूँगा नहीं होगा
समय अवश्य बोलेगा


4. समय 

कहते हैं
समय हर ज़ख़्म
को भर
देता है
पर, क्या ?
समय
उस ज़ख़्म के
निशानात को
मिटा भी देता है ?
ऐसा 'निर्जन'
नहीं सुना है
समय
तू अगर
ज़ख़्म भरता है
तो उस पर
एक एहसान
और कर
उसके निशानात
को भी
मिटा दे
तब सब कहेंगे
समय बलवान
ही नहीं
ग़मसार भी है


5. जिन्दगी 

मैं दो कदम चलता और एक पल
को रुकता मगर
इस एक पल जिन्दगी मुझसे चार कदम आगे बढ
जाती ।
मैं फिर दो कदम चलता और एक पल
को रुकता और
जिन्दगी फिर मुझसे चार कदम आगे बढ जाती ।
युँ ही जिन्दगी को जीतता देख मैं
मुस्कुराता और
जिन्दगी मेरी मुस्कुराहट पर हैंरान होती ।
ये सिलसिला यहीं चलता रहता
फिर एक दिन मुझे हंसता देख एक सितारे ने
पुछा........
" तुम हार कर भी मुस्कुराते हो ! क्या तुम्हें दुख
नहीं होता हार का ? "
तब मैंनें कहा
मुझे पता हैं एक ऐसी सरहद आयेगी जहाँ से आगे
जिन्दगी चार कदम तो क्या एक कदम भी आगे
ना बढ पायेगी,
तब जिन्दगी मेरा इन्तज़ार करेगी और मैं
तब भी युँ ही चलता रुकता अपनी रफ्तार से
अपनी धुन मैं वहाँ पहुँगा.......
एक पल रुक कर, जिन्दगी को देख कर
मुस्कुराउगा
बीते सफर को एक नज़र देख अपने कदम फिर
बढाँउगा।
ठीक उसी पल मैं जिन्दगी से जीत जाउगा
मैं अपनी हार पर भी मुस्कुराता था और
अपनी जीत पर भी
मगर जिन्दगी अपनी जीत पर
भी ना मुस्कुरा पाई थी और अपनी हार पर
भी ना रो पायेगी !


6. (हाईकु)~(ताकां)

रूह मे बसा
शबनमी ए:सास
शब्दो से परे

अधर लग
है साँसे, सकुचाई
झिझकती सी.....!

लज्जा के ताले
पलके झुकी झुकी
मुस्काती सी

लचीली डाल
बह रहे सपने
मन प्रांजल...!

न कोई वादा
बस हाथो को थाम
ले ली कसमें
उगलिया पकड़
दिये सात वचन....!

विश्वास के बीज
अनुबंध प्रेम का
अनुरक्त रहे

खिलखिलाता
जीवन का बसंत
मिलन है ये

आत्मा से आत्मा
है शाश्वत प्रेम का
रिश्ता सदैव
मन, वचन ,काय
बंधन जन्मो जन्म.....!!


7. मेरा प्रथम प्रणाम 

पंचतत्व निर्मित
बिखरी रूह को हमारे देते जो आयाम ।
उस ऊपरवाले को खुदा, भगवान, जीजस ..
जो भी दो तुम नाम।
उन्ही की चरणों में ..
मेरा प्रथम प्रणाम ।

एक मेरी मुस्कान, लगती बेशकीमती जिन्हें
देने वो नन्ही मुस्कान हमें, दर्द
लगी खुशियाँ जिन्हें ।
अपने विधाता को, मेरे जन्मदाता को ।
उनकी तस्वीर को, पाया उन्हें, अपनी तकदीर
को ।
मेरा प्रथम प्रणाम

इंसान से इंसानियत
चुटकी सी मुस्कान देने,
लबों को किसी की ..
आजीवन करते हैं जो काम ..
चल सके हम भी इस राह पर ..
उन्ही की राहों को ..
मेरा प्रथम प्रणाम ।


8. कुछ रिश्ते 

कुछ रिश्ते जो अनाम
होते है ,
फिर भी मन के करीब
लगते है
जिनको छूने से भी डर
लगता है लेकिन
मन से महसूस तो किया
जाता है ,
जुबान पर नहीं लाया जाता
और नाम भी नहीं दिए जाते
ऐसे अनाम रिश्तो को
तो फिर क्या कहिये ऐसे रिश्तों
को,
जिनका नाम आते ही होठों पर
एक मधुर मुस्कान सी आ
जाती है ,
उस अनाम से रिश्ते को मुस्कान
के रिश्ते का नाम तो दे ही
सकते है


9. कलम

तुम ऐसी क्यों हो ?
तुम ऐसी क्यों हो ?
मुझे जिस रिश्ते की जरूरत होती है
तुम वैसी ही कैसे बन जाती हो ?
कितना झगड़ता हूँ ,
कभी बेमतलब गुस्सा हो जाता हूँ ,
पर तुम्हे एक शिकन तक नहीं आती
हमेशा मेरी बातें सुन कर
हँसते रहती ही,
कभी सोचता हूँ क्या रिश्ता है
मेरा तुम्हारा ?
किस नाम से पुकारू तुम्हे ?
पर नहीं ,शायद
हमारे रिश्ते को नाम देना बेमानी , बेमतलब है ,
ये ऐसा अटूट रिश्ता है
जो किसी नाम ,
किसी बंधन का मोहताज नहीं
ये निर्मल जल जैसा है,
जो बस बहता रहता हॅ !
एहसासों की नाव लिए ,
और कहता है
"नाव कागज़ की सही
पर डूबेगी नहीं "


10. कुछ तो बोलो

सुनो,
तुम कुछ तो बोलो
न बोलने से भी
बढ़ता है अँधेरा।
हम कब तक अपने-अपने
अँधेरे में बैठे,
अजनबी आवाजों की
आहटें सुने!
इंतजार करें
कि कोई आए
और तुमसे मेरी
और मुझसे तुम्हारी
बात करे।
फ़िर धीरे-धीरे पौ फ़टे
हम उजाले में एक दूसरे के
चेहरे पहचानें
जो अब तक नहीं हुआ
तब शायद जानें
कि हममें से कोई भी गलत नहीं था।
परिस्थितियों के मारे हम
गलतफ़हमियों के शिकार बने
अपनी ही परिधि में
चक्कर काटते रहे हैं।
कहीं कुछ फ़ंसता है
रह-रह कर लगता है
कौन जाने!
बिन्दु भर की ही हो दूरी,
कि हम अपनी अपनी जगह से
एक कन आगे बढ़े
और पा जायें वह बिन्दु
जहाँ दो असमान वूत्त
परस्पर
एक -दूसरे को काटते है!
सच कहना
तुम्हें भी उसी बिन्दु की तलाश है ना !